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नज़्म
ख़तीब-ए-आज़म (सय्यद अता-उल्लाह-बुख़ारी)
ख़तीब-ए-आज़म अरब का नग़्मा अजम की लय में सुना रहा है
सर-ए-चमन चहचहा रहा है सर-ए-विग़ा मुस्कुरा रहा है
शोरिश काश्मीरी
ग़ज़ल
जुस्तुजू उन की दर-ए-ग़ैर पे ले आई है
अब ख़ुदा जाने कहाँ तक मिरी रुस्वाई है
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
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ग़ज़ल
जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ
कब तलक ढूँडूँ कहाँ तक जादा-पैमाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
न तो काम रखिए शिकार से न तो दिल लगाइए सैर से
बस अब आगे हज़रत-ए-इश्क़-जी चले जाइए घर ही को ख़ैर से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हासिल-ए-ज़ीस्त ज़िया-ए-ख़त-ए-तक़्दीर हो तुम
बज़्म-ए-एहसास में बिखरी हुई तनवीर हो तुम
अयाज़ आज़मी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शिकवा
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मोहब्बत में कभी तस्कीन-ए-दिल पाई नहीं जाती
तबीअ'त ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती